Saturday 30 May 2020

डायरी

डायरी

मैं उन चंद लोगो मे हुँ
जो जीवन के प्रतिक्षण में
सम्पूर्णता चाहते हैं!

मैं नही चाहती वापस से बचपन
मैंने बहुत जतन से बचपन काटा
मैं चाहती थी बड़ी होना !

सुंदर होना,, दोस्त बनाना ,प्रेम करना
कॉलेज केम्पस कैंटीन जीना
मैं गिन गिन कर साल पार करती गयी
इसी उम्मीद पर ...

आगे वो उम्र सपनो वाली भी नही
जब होस्टल के कमरे में चिपका
सलमान खान भी
सपने में लाना नही चाहा.

बस गाँव के घर से दढियल खादी के कुर्ते वाले
झोले वाले दार्शनिक की तलाश होती रही

गाड़ियों हवाई जहाज में बैठे शख्स को
नजर भर नही देखा
क्योकि मुझे स्लीपर वाले पाँव के संग
सड़क पर चलने का इंतजार रहा..

जिसके आँखों मे सपनों की शराब
और हाथ मे चाय की कुल्हड़ रखी थी।

मुझे पिता  जैसा  की दरकार भी  न थी
बस ,प्रेम के लिए "जरूरतमंद" इंसान!

क्योंकि मुझे प्रेमी प्रेम करने के लिए चाहिए था
जरूरते पूरी करने के लिए नही..

लेकिन न मैं अतीत बदलना चाहती हूँ
न वर्तमान...
निःसन्देह विधाता बेहतर रचयिता हैं

मैं कविताएँ कितनी भी बेहतर लिख लूँ
 जीवन गाथा उस विधाता
और हमारे ईश्वर से बेहतर ..
कोई नही लिख सकता!

आराधना सुमन

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