Monday, 29 April 2024

अनिता भारती जी की कविता

'लिखती हुई स्त्रियों ने बचाया है संसार यह' 

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रेखांकन राजेंद्र स्वामी 'लवली' 


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गेरू से 

भीत पर लिख देती है

बाँसबीट 

हारिल सुग्गा

डोली कहार

कनिया वर

पान सुपारी

मछली पानी

साज सिंघोरा

पउती पेटारी


अँचरा में काढ लेती है

फुलवारी

राम सिया

सखी सलेहर

तोता मैना


तकिया  पर

नमस्ते

चादर पर 

पिया मिलन


परदे पर 

खेत पथार

बाग बगइचा

चिरई चुनमुन

कुटिया पिसीआ

झुम्मर सोहर

बोनी कटनी

दऊनि ओसऊनि

हाथी घोड़ा

ऊँट बहेड़ा


गोबर से बनाती है

गौर गणेश

चान सुरुज

नाग नागिन

ओखरी मूसर

जांता चूल्हा

हर हरवाहा

बेढ़ी बखाड़ी


जब लिखती है स्त्री

गेरू या गोबर से 

या

काढ़ रही होती है

बेलबूटे

वह

बचाती है प्रेम

बचाती है सपना

बचाती है गृहस्थी

बचाती है वन

बचाती है प्रकृति

बचाती है पृथ्वी


संस्कृतियों की 

संवाहक हैं 

रंग भरती स्त्रियाँ


लिखती स्त्री 

बचाती है सपने 

संस्कृति और प्रेम।


 - अनिता भारती