Friday 29 May 2020

'मूडी' मन का मुहल्ला

        'मूडी' मन का मुहल्ला
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'मन का मुहल्ला'
इसके बाहर भी एक द्वार है जहाँ
लगे हैं दो किवाड़,
कभी तो ये किवाड़ बंद हो जाते हैं जो किसी पुरवाई बयार की राह देखते
कि बहे कोई बयार
आए कोई झोंका और
खड़का जाए उढ़काया हुए किवाड़
हो कोई दस्तक
कोई आहट आए
पर ये दरवाजे भी इतने सीधे नहीं हैं,
थोड़े मूडी हैं मेरी तरह
ठीक जैसे नाम को सार्थक कर रहे हों कि
हम तो भई अपने मन के हैं
जो खुलना हो तो आहट मात्र पर खुल जाएँ और
जो मन न भाए तो लाख दस्तकों पर भी चुप्पा बने रहें,
तो आइए आप भी मन के मुहल्ले में,
हो सकता है आपके
पगचाप से ही इसका गोशा-गोशा आपका हो जाए
आइयेगा जरूर।


             __ज्योति स्पर्श


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