मन का मुहल्ला

'मन का मुहल्ला' कि इसके बाहर भी एक द्वार है जहाँ लगे हैं दो किवाड़, कभी तो ये किवाड़ बंद हो जाते हैं जो किसी पुरवाई बयार की राह देखते हैं।कि बहे कोई बयार आए कोई झोंका और खड़का जाए उढ़काए किवाड़ों को। ये जैसे नाम को सार्थक कर रहे हों कि हम तो भई अपने मन के हैं जो खुलना हो तो आहट मात्र पर खुल जाएँ और जो मन न भाए तो लाख दस्तकों पर भी चुप्पा बने रहें, तो आइए आप भी मन के मुहल्ले में, हो सकता है आपके पगचाप से ही इसका गोशा-गोशा आपका हो जाए।

Monday, 29 April 2024

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अनिता भारती जी की कविता 'लिखती हुई स्त्रियों ने बचाया है संसार यह'  ------- रेखांकन राजेंद्र स्वामी 'लवली'  ---- गेरू से  भी...
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Friday, 13 November 2020

ज्योतिपर्व की दिली शुभकामनाएँ

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 वक्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा है, बच गया तलवार से तो फूल से कटना पड़ा है, क्यों न कितनी ही बड़ी हो, क्यों न कितनी ही कठिन हो, ह...
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Saturday, 30 May 2020

डायरी

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डायरी मैं उन चंद लोगो मे हुँ जो जीवन के प्रतिक्षण में सम्पूर्णता चाहते हैं! मैं नही चाहती वापस से बचपन मैंने बहुत जतन से बचपन काटा...
Friday, 29 May 2020

'मूडी' मन का मुहल्ला

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        'मूडी' मन का मुहल्ला      *************** 'मन का मुहल्ला' इसके बाहर भी एक द्वार है जहाँ लगे हैं दो किवाड़, कभी...
Thursday, 28 May 2020

दो शफ्फाक फूल

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दो  शफ्फाक फूल.. कि, जैसे तेरा मन मेरा बचपन कि, हवा का छुना कि जैसे यूँ ही मुड़ना कि जैसे माथे लगाना नदी पैर उतारने से पहले कि ...
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Thursday, 28 January 2016

after 5 years

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2016 जनवरी के29 तारीख को फिर से कुछ लिख रही हूँ ब्लॉग पर। ब्लॉग पर लिखने का गैप लगभग 5 साल का रहा।  एक्साइटेड हूँ जैसे पहली बार थी। बस लिखन...
Monday, 14 March 2011

a propozal

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tere hatho pe apna nam likh du,aa ki jindgi tamam likh du/ mita sake na koi yaad meri., itna mai tujhme pyar likh du// kal ho jayenge dur ji...
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jyoti sparsha
लिखने-पढ़ने के जरिए एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश
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