दो शफ्फाक फूल..
कि, जैसे तेरा मन
मेरा बचपन
कि, हवा का छुना
कि जैसे यूँ ही मुड़ना
कि जैसे माथे लगाना नदी
पैर उतारने से पहले
कि जैसे तुम्हारा नाम
मेरा गीत
कि जैसे क्षितिज
जैसे मोरपंखी सपन
दो शफ्फाक फूल।
मेरा बचपन
कि, हवा का छुना
कि जैसे यूँ ही मुड़ना
कि जैसे माथे लगाना नदी
पैर उतारने से पहले
कि जैसे तुम्हारा नाम
मेरा गीत
कि जैसे क्षितिज
जैसे मोरपंखी सपन
दो शफ्फाक फूल।
जी, अम्मू
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteधन्यवाद, विश्वमोहन जी।
Deleteवाह। लगातार लिखें।
ReplyDeleteशुक्रिया, सुशील जी।
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